बावरी/बावरिया समुदाय शिकारी नहीं, वीर विश्वास पात्र बहादुर योद्धा सैनिकों के वंशज हैं – दुर्गादास जी, अखिल भारतीय घुमन्तू कार्य प्रमुख
श्रीगंगानगर। घुमन्तू जाति उत्थान न्यास एवं शिक्षा संकाय, टांटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर के संयुक्त तत्वाधान में बावरी/ बावरिया समुदाय की राष्ट्रीय संगोष्ठी 19 जुलाई 2025 को आयोजित की गई। बावरी/बावरिया समुदाय के ‘‘इतिहास – संस्कृति और वर्तमान चुनौतियां’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय घुमन्तू कार्य प्रमुख माननीय दुर्गादास जी उपस्थित रहें। दुर्गादास जी ने उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए बावरिया समुदाय के वास्तविक इतिहास से परिचय कराया। घूमन्तू कौन ?, घुमन्तू बनने का कारण और बावरिया शब्द की उत्पत्ति एवं संस्कृति से अवगत कराया। उन्होंने कहा आप सभी उन वीर योद्धा और बहादुर सैनिकों के वंशज हैं। जिन्होंने 7वीं सदी से लेकर 17 वीं सदी तक अनेकों आक्रमणों का मुकाबला किया, संघर्ष करते – करते पीढ़ियां गुजर गई, युद्ध हारे भी गये और पलायन भी करना पड़ा। लेकिन अपना धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति प्रेम को नहीं छोड़ा। मेवाड़ में रहकर इन्होंने सनातनी संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी हैं, यह बड़ा उदाहरण है कि बावरी समाज हिन्दू संस्कृति का पोषक रहा हैं। और जिन्हें कुशलतापूर्वक हथियार चलाना आता हैं वे शिकार तो शोक के लिए करते ही हैं। बावरी/बावरिया समुदाय की पहचान शिकारी जाति के रूप में नहीं विश्वास पात्र वीर योद्धा सैनिक की हैं।
बावरी/बावरिया समाज की राष्ट्रीय संगोष्ठी टांटिया विश्वविद्यालय श्रीगंगानगर में समस्त कार्यकर्ताओं के सहयोग से संपन्न हुई। इस संगोष्ठी में 300 से अधिक संख्या में प्रतिभागी , समाज बंधु/भगिनी, एवं आयोजक सदस्य उपस्थित रहें।




